आजमगढ़ के लखमनपुर से जुड़ी प्रधानमंत्री की कहानी: गिरमिटिया मजदूर का परपोता बना कैरेबियन देश का राष्ट्राध्यक्ष

आजमगढ़।
कहते हैं, मिट्टी चाहे कितनी भी दूर चली जाए, उसकी जड़ें कभी नहीं टूटतीं। आजमगढ़ जिले के एक छोटे से गांव लखमनपुर की कहानी इस कहावत को सच्चाई में बदल देती है। यही वह गांव है, जहां से एक गिरमिटिया मजदूर के वंशज ने न केवल दुनिया देखी बल्कि कैरेबियन देश त्रिनिदाद-टोबैगो का प्रधानमंत्री बनकर इतिहास रच दिया।

हम बात कर रहे हैं वासुदेव पांडे (Basdeo Panday) की, जिन्होंने 1995 में त्रिनिदाद-टोबैगो के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर उस देश के पहले भारतीय मूल के प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल किया।
वासुदेव पांडे की जड़ें सीधे आजमगढ़ जिले के लखमनपुर गांव (तहबरपुर थाना, निजामाबाद तहसील) से जुड़ी हैं।


🔹 गिरमिटिया मजदूर अयोध्या यादव से शुरू हुई कहानी

इतिहास के पन्ने बताते हैं कि 19वीं शताब्दी की शुरुआत में लखमनपुर गांव के निरहू यादव का बेटा अयोध्या यादव रोज़गार की तलाश में गिरमिटिया मजदूर बनकर त्रिनिदाद-टोबैगो चला गया। वहां उन्हें पानी पिलाने का काम मिला, और स्थानीय लोग उन्हें “पानी पांडे” कहने लगे। यही उपनाम बाद में परिवार के “पांडे” सरनेम के रूप में स्थायी हो गया।

अयोध्या यादव ने वहीं सुभन्ति देवी नामक महिला से विवाह किया। उनकी पुत्री किशुनदेवी का विवाह भारतीय मूल के सुखचंद्र पांडे से हुआ, जिनके घर 1933 में वासुदेव पांडे का जन्म हुआ।


🔹 राजनीति में सफर और प्रधानमंत्री पद तक का सफर

वासुदेव पांडे ने प्रारंभिक शिक्षा त्रिनिदाद-टोबैगो से प्राप्त की और 1951 में सीनियर कैंब्रिज उत्तीर्ण करने के बाद लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से नाट्यकला, कानून और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की।
देश लौटकर उन्होंने मजदूर आंदोलनों में भाग लिया, राजनीति में सक्रिय हुए और 1976 में सांसद बने
लगातार संघर्ष और जनसमर्थन के बाद 1995 में वे प्रधानमंत्री बने और 2001 तक इस पद पर बने रहे।


🔹 1997 में भारत और अपने पूर्वजों की धरती पर लौटे

वासुदेव पांडे ने 28 जनवरी 1997 को गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत का आधिकारिक दौरा किया। इसी यात्रा में वे अपने पूर्वजों की धरती लखमनपुर गांव भी पहुंचे।
उनके साथ उनकी पत्नी उमा पांडे और बेटी वात्सल्य पांडे भी थीं।

गांव पहुंचने पर लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने अपने परिजनों और ग्रामीणों से मुलाकात की, गांव की स्थिति जानी और विकास कार्यों का वादा किया


🔹 गांव में पहली बार बनी पक्की सड़क और हेलीपैड

वासुदेव पांडे के आगमन की तैयारियों में उस समय प्रशासन ने तीन हेलीपैड बनाए और पहली बार लखमनपुर गांव तक पक्की सड़क बनाई गई।
इस दौरान बालिकाओं के लिए स्कूल और 10 किलोमीटर सड़क निर्माण की घोषणा हुई, परंतु ग्रामीणों के अनुसार अधिकांश योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह गईं।


🔹 15 लाख रुपये का चेक बना रहस्य

परिजनों ने बताया कि वासुदेव पांडे ने अपने दौरे के दौरान गांव के विकास के लिए 15 लाख रुपये का चेक दिया था, जो आज तक लापता है।
ग्रामीणों ने कई बार जिला प्रशासन से इसकी जानकारी मांगी, लेकिन वह धनराशि या उससे जुड़ा कोई रिकॉर्ड अब तक नहीं मिला।


🔹 आज भी विकास की राह देख रहा लखमनपुर

लखमनपुर गांव में आज भी लोग गर्व से वासुदेव पांडे का नाम लेते हैं।
परंतु, जिस गांव से एक मजदूर का वंशज प्रधानमंत्री बना, वही गांव आज भी बदहाली और उपेक्षा से जूझ रहा है।
ग्रामीण कहते हैं — “हमारे गांव की मिट्टी में इतिहास बसता है, पर सरकारों ने इसे कभी पहचान नहीं दी।”

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